श्रीबाबा की तपोस्थलियाँ आज के पर्यपेक्ष में

भर्तहरि गुफ़ा गिरनार पर्वत
गिरनार गेट से माँ अम्बा और दत्तात्रेय के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों के लिये चढ़ाई आरम्भ होती है। 5000 सीढ़ियाँ चढ़ने पर अम्बामाता का मन्दिर आता है और 10,000 सीढ़ियाँ चढ़ने पर दत्तात्रेय पादुका मन्दिर आता है। इस यात्रा को पूरा करने के लिये छः घंटे तक प्रातः सूर्योदय से पहले ही चढ़े तब जाकर यात्रा पूरी होती है, उतना समय हमारे पास न था। किन्तु भर्तहरि गुफ़ा 2300 सीढ़ियों पर ही हमको बताई गई थी, इसलिये यह चढ़ाई स्वीकार करके हम चल पड़े। श्रीबाबा ने इस भर्तहरि गुफ़ा में भी साधना करी थी, इसलिये यह गुफ़ा हमारे लिये महत्वपूर्ण थी।

यह स्थान भर्तहरि गुफ़ा के भी अन्दर दूसरी गुप्त गुफ़ा में है, कदाचित श्रीबाबा ने यहीं साधना करी हो।

यहाँ पर भी धूने के पास ही शक्तिनाँ की स्थापना देखने में आयी>

href=”http://www.santsamagam.com/%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a5%80%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%a4%e0%a4%aa%e0%a5%8b%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%a5%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%81/%e0%a4%ad%e0%a4%b0%e0%a4%a5%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%97%e0%a5%81%e0%a5%9e%e0%a4%be-%e0%a4%ac%e0%a4%be%e0%a4%b9%e0%a4%b0%e0%a5%80-%e0%a4%a7%e0%a5%82%e0%a4%a8%e0%a4%be” rel=”attachment wp-att-1169″> यह मुख्य धूना है और मुख्य गुफ़ा में स्थापित है, जिसको नाथ सम्प्रदाय के सन्तो ने ही तपा होगा। [/caption]

गुप्त धूने के पीछे ही शक्तिमाता का चोटासा मन्दिर भी है।

नाथ सम्प्रदाय का अभिनन्दन घोष शब्द है ‘आदेश’

यह तपस्वी महात्मा की अद्भुत तस्वीर भर्तहरि गुफ़ा में < वहाँ के बाबाजी ने बताया ये कोई अनजान सन्त है। श्रीबाबा भी हो सकते है। [/caption] राजा भर्तहरि उज्जैन का राजा था। राजा भर्तहरि और उनका भान्जा राजा गोपीचन्द दोनो गुरु गोरखनाथजी के शिष्य थे और दोनो ही नाथपन्थी थे, गुरु गोरखनाथ के शिष्य थे। नाथ पंथी योगियों के सम्प्रदाय का प्रादुर्भाव नेपाल में बौद्ध और शैव साधनों के मिश्रण से हुआ बताते है, आज से करीब 1000 वर्ष पहले। बाद में यह नाथ सम्प्रदाय पूरे हिन्दीभाषी प्रदेश में फ़ैल गया। नाथ सम्प्रदाय वाले सन्तों का अभिनन्दन होता है “आदेश”, वहाँ निवासित एक बाबाजी को आते-जाते यात्री “आदेश” बोलते थे और जवाब में बाबाजी भी “आदेश” ही कहते थे। यहाँ पर जो छिपाहुआ गुप्त धूना था, वह हमको विशेष लगा क्योंकि इस जानी-पहचानी गुफ़ा के ऊपरी भाग में छिपा हुआ था और वहाँ उस स्थान को जाननेवाला ही पहुंच सकता है। हमको ऐसा लगा कि क्यों न हो, श्रीबाबा ने इसी स्थान पर धूनी तापी हो। कुछ क्षण यहाँ बैठकर और देखभाल कर बाहरवाली मुख्य गुफ़ा में वापस आ गये और बाबाजी द्वारा चाय प्रसादी लेकर हम प्रस्थान कर गये, कारण कि नीचे गुप्तेश्वर महादेव को भी खोजना था।