राम धुन और श्री बाबा के ”पसन्दगी” वाले भजन

श्रीबाबा का अक्सर दोहराया हुआ मानसिक भजनः

सासं कमण्डल अमृत टपके, उनको पी के प्यास बुझाता था ।
नाम ब्रह्म गुफा में जाके बिराजे, जगमग ज्योत जगाता था ।
अरे निरन्जन विरले यह कोई साधू पाता था ।।

नाम राम, राम का नाम जपे, उसी का ध्यान लगाता था ।
प्रेम सहित ध्यान करता था, आप ही रूप बनाता था ।
अपने सिवाय कोई नहीं दिखता था ।
अरे निरन्जन विरले पद को कोई साधू गाता था ।।

राम राम आधारा, जगत में राम राम गुण गावे,
नाम बोध और नाम सहारा, हाथ सांति पद पावे, नाम आसरा और सारा शरीर जलावे, न ओढे न पहने ।

राम किया सोई हुआ, राम करे सो होय । राम करे सो होयगा, काहे कल्पे कोय ॥
राम नाम अनमोल है, बिना दाम मिल जाय । तुलसी ऐसे नाम को गाहक नहीं ठहराय ॥
सकल सुमन्गल दायक रघु नायक गुण गान । सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिन्धु बिना जलयान ॥
 

रोम रोम नाडी नाडी मेरा राम रमता, रोम रोम नाडी नाडी मेरा राम रमता, मेरा राम रमता राधेश्याम रमता…


यह नगरीया राम की, बसे राम ही राम, राम बुलावे राम को आवे राम ही राम, नाम की खेती जो करे…..

भजो राम राम राम राम राम राम राम राम, श्री राम राम राम राम राम राम राम….

 

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