श्रीबाबा की तपोस्थलियाँ आज के पर्यपेक्ष में

जूनागढ़ गिरनार पर्वत स्थित तीर्थस्थल NTB के अनुसार श्रीबाबा का अगला पड़ाव जूनागढ़ था, जहाँ पर उन्होने दीर्घकालीन साधना करी और जहाँ श्रीगोपालबाबा उनकी शरण में आये थे। अनुभवी संतजन से सत्संग के दौरान यह जानने में आया कि गिरनार में आये बिना परमात्मज्ञान सिद्ध नहीं होता।
‘जूनागढ’ अर्थात पुराना किला, यह बसावट इतनी पुरानी है कि इस शहर को, जो कि गिरनार पर्वत श्रंखला का प्रवेशद्वार है, ग्रीक सभ्यता जितना पुराना माना जाता है, कारणकि जूनागढ को ‘योनागढ’ भी कहते है, ‘योना’ अर्थात ग्रीक् । मतलब अतीत में यह स्थान Indo-Greek Kingdom रहा है। साररुप से यही कह सकते है कि जूनागढ वास्तव में मानव-सभ्यता का सनातन केन्द्र है, अतीत से गहरा रिश्ता रखनेवाला पवित्र स्थान है, सन्त-महात्माओं की तपोस्थली है।
गिरनार गेट जहाँ से तपसिद्ध गिरनार भगवान का साम्राज्य आरम्भ होता है, उससे आधा कि. मि. पहले राधादामोदर कुण्ड है, मुचुकन्द गुफ़ा है, गुप्तेश्वर गुफ़ा स्थित महादेव मन्दिर है (जहाँ श्रीबाबा ने कुछ काल तक घोर तप किया था) और राधाडेरी नामक तीर्थस्थान है, जो एक-दूसरे से 100-200 गज जितने ही दूर है, ज्यादा नहीं। गिरनार क्षेत्र के अधिपति भगवान श्री राधादामोदरजी – श्री रेवती बलदेवजी का विशाल प्राचीन मन्दिर है, जिसको भवनाथ तीर्थस्थान के नाम से बेहतर जाना जाता है (चित्र) । इस Landmark से 70-80 गज दूर है मुचकन्द गुफ़ा जिसमें 5200 वर्षों से अखण्ड धूना जल रहा है और मुचकन्द महादेव का मन्दिर है। राजा मुचकन्द की कथा युगों पुरानी है, भगवान श्रीकृष्ण मथुरा से दौड़ाते-दौड़ाते कालयवन को इस गुफ़ा में ले आये थे जहाँ मुचकन्द एक युग लम्बी प्रगाढ़ निद्रामग्न थे और इन्द्र के वरदान के फ़लस्वरुप मुचकन्द को जबरन्द जगाने पर उनकी दृष्टि मात्र से कालयवन तत्काल जलकर भस्म हो गया था। मुचकन्द को कृष्ण भक्ति चाहिये थी और इनका पुनर्जन्म भक्त नरसी मेह्ता के स्वरुप में हुआ था।

राधा दामोदर कुण्ड से पचास गज दूर ही मुचकन्द गुफ़ा है ।

नीलकण्ठ महादेव जूनागढ श्रीकृष्ण द्वारा स्थापित
गुप्तेश्वर महादेव गुफ़ा श्रीबाबा की दीर्घकालीन तपःस्थली
मुचकन्द गुफ़ा से 60-70 गज दूर ही मुख्य सड़क से लगकर ही गुप्तेश्वर महादेव अर्थात श्रीबाबा की तपस्थली मिल गई। किसी गुजराती परमभक्त ने श्रीबाबा की छोटीसी तस्वीर दुर्गा के फ़ोटो फ़्रेम में लगा रखी थी, वहाँ के सेवक ने बताया कि कोई भक्त यह तस्वीर कुछ वर्षों पहले लगा गया था, इससे ज्यादा उन सेवक को कुछ मालुम नहीं था।
गुप्तेश्वर की छोटीसे गुफ़ा रही होगी, जो वर्तमान काल में तो मुख्य सड़क के नीचे ही आ गई है, बल्कि सड़क से ही पत्थर की दस सीढ़ीयाँ उतरकर पहुँचा जाता है। गुप्तेश्वर शिवलिंग अति विशाल है (चित्र) और पास की दीवार पर देवी पार्वती की मूर्ति दीवार के ही चुनि हुई मिली और सिन्दुर से लीपी हुई है। श्रीबाबा ने जो माँ शक्ति के पूजन के लिये दुल्ली सेठ से जो चरण पादुका मंगवायी थी (NTB p.15), वे कालान्तर में खण्डित हो गई थी, तब एक भक्त ने दुसरी पादुका बनवा कर यहाँ धारण करवा दी थी, जिनपर संवत 2039 उकेरा हुआ दिखता है, अर्थात आज 2075 से 36 वर्ष पहले की बात है। किन्तु इन पादुकाओं में उनका नाम और निधन तिथि आदि उकेरी हुई है (चित्र)।
NTB p. 14 में राधा ढेबरी नामक स्थान लिखा है, जो वास्तव में “राधा डेरी” नामक स्थान है, जहाँ पर श्रीकृष्ण ने श्रीराधा के लिये रातोंरात एक मढ़ी बनवाई थी। मढ़ी को ही गुजराती भाषा में डेरी कहते है।

मुख्य सड़क के ठीक नीचे ही है यह गुफ़ा और गुप्तेश्वर महादेव

्श्रीबाबा की छोटीसी तस्वीर मिली जो दुर्गामाता के बड़े फ़्रेम के कोने में लगी हुई थी और जिस पर गुजराती में श्रीबाबा का नाम छपा है ।

गुप्तेश्वर शिवलिंग विशाल हैकरीब डेढ़ दो फ़ुट की गोलाई वाला लिंग है।

देवी शक्ति की प्रतिमा दीवार में स्थाप्त कर रखी है। जिसकी आराधना श्रीबाबा ने करी थी>

शक्तिमाता के चरणचिन्ह जो खण्डित होने के उपरान्त बदल दिये गये थे।

गुप्तेश्वर महादेव से 30 फ़ुट दूर ही है राधा डेरी< जो श्रीकृष्ण ने बनवायी थी राधाजी के लिये।[/caption]