भक्तो के अनूठे अनुभव एवं संस्मरण

पूज्यनीय श्री मीरॉ बहिनजी(मांई) तथा आश्रम के योगियों के अनुभव

१. कुत्ते द्वारा राम नाम का जाप
ऐसा नही कि बाबा के समय की बात है, लकिन जबलपुर आश्रम चून्कि एक तपोभूमी है, इसलिये यहां दिव्य वातावरण सदैव रहता है, और सदैव रहेगा भी, इसलीये ऐसी पावन भूमी पर निराकार की लीलायें होती रहती है । प्रस्तुत विडीओ क्लिप में मांई सुना रही है एक कुत्ते के बारे में जो रोज प्रभात वेला (४ से ७ सुबह) में राम राम का जाप करता था, और उसका उच्चारण इतना स्पष्ट होता था कि साफ सुनायी देता था । अनूप भैया ने कई बार उसकी वाणी टेप करनी चाही मगर ज्यों ही उसके पास टेप रिकार्डर केकर चुपके से भी पहुंचे तो भी वो रुक जाता था । आखिर एक दिन उस कुत्ते ने सुबहा सुबहा बगीचे में स्थित बेल के पेड को आगे के दोनो पन्जो से झुक कर प्रणाम किया और पास में ही दूसरे पेड का सहारा लेकर बैठ गया, तुरन्त उसका हिलना डुलना बन्द हुआ और वो सहज ही चल बसा । ये तो ऐसी बात हुई जैसे वो अपनी मर्जी से मर गया हो, ऐसा ही हुआ । वो कुत्ता क्या असल में कोई योगी था जो अपना भेष बदल कर अपनी साधना कर रहा था? या क्या वो कोई अभिशप्त आत्मा थी? इन सवालो का जवाब कौन दे सकता है, लेकिन इतना तो मान्य है कि बाबा की इस तपोभूमी की दिव्यता का कोई अन्त नहीं है ।”शरीर छूटने पर महात्माओं का अन्त नहीं होता, उनकी शक्ती हमेशा विध्यमान रहती है” (नर्मदा तट के ब्ररह्मरिशी पृ.१६३) । यहां कण कण में गोपाल ही गोपाल है, वही तो सब भक्तो की official greeting हैः “गोपाल ही गोपाल” ।

2. खुंखार भालू की आत्मोन्नति, गाय का शोक-भाव, बाबा के प्रति अति-श्रद्धा का प्रदर्शन
पूज्यनीय मीरां बहिन जी (माई) जिन्हें श्री बाबा की सेवा का अपने बचपन से ही सौभाग्य मिला है, उनके पास ढेरों अत्यन्त रोचक, विलक्षणयुक्त, और जानने योग्य अनुभव है जो उनके मूड की मौज के समय ही जाने-सुने जा सकते है। एसा ही ये अद्भुत, सोचने पर मजबूर करने वाला दृष्टान्त है जिसमें माई एक बार की बात बता रही है कि एक समय बिंयाबान जन्गल में श्री बाबा की साधना के दौरान बहुत से भालू उनके चारो तरफ जमा हो गये, तब उनमें से एक बडे भालू ने जोर की गर्जना करी तो सब के सब भाग लिये, और वो भालू स्वयं कई दिनो तक वहीं पर बाबा की सेवा में मौजूद रहा । बाबा को ये भी ध्यान नही रहता था कि कौन उनके सामने धूना बना कर उसमे लकडीयां डालता था, लेकिन जब ध्यान टूटा तब बाबा ने अपने सामने जलता हुआ धूना पाया (ये ध्यान देना बाबा यहां पर वो रहस्य बताना नहीं चाह्ते, वरना उन्हें सब मालूम रहता ही है, समय के आगे या पीछे) । तब बाबा ने देखा कि वो भालू निमाडा सा बैठा है और आन्खो से आन्सू निकले पडे है । बाबा ने उससे कहा “आप जाइये, समय आने पर आपका उद्धार हो जायेगा ।
बाद में उस भालू का जन्म एक कुत्ते की योनि में हुआ और वो बाबा के पास भी पहुंच गया । वो कुत्ता जिसका नाम ‘टाइगर’ रखा था, बाबा की सेवा में हर क्षण रहता था, जो बोलते थे वो करता था, यानेकि सब बात समझता था…यहां तक कि बाबा के खाने से पहले कभी भी कुछ नहीं खाता था, जैसे सब लोग प्रणाम करते है वैसे ही आगे के दोनो पैर पसार कर सिर जमीन पर रगड कर प्रणाम तक भी किया करता था, सोच कर कितना आश्चर्य हो रहा है ।
श्री बाबा जब ब्रह्मलीन हुए तब गौशाला (करीब २५-३० गायें थी कुल मिलाकर) में से एक गाय स्टील की जन्जीर तोड कर दौड पडी, बाबा के पार्थिव शरीर की तरफ, वहां रोते बिलखते भक्त जनो के सिर चाट चाट कर उनको ढाढस दिलाया और खुद ने ५ दिनो तक कुछ नहीं खाया, जो भी बहलाने पुचकारने को जाते थे, सीधा मारने को दौडती थी । जब भौज हुआ तब माई गयी एक थाली में सब खाना रख कर, उससे विनति करी, तब माई का सिर चाट चाट कर पूरे बाल खराब कर दिये अपनी दिलासा देते हुए, और तभी जाकर उसने उस खाने को खाया और उसके बाद अपना चारा सुचारू रूप से खाने लगी ।

ये सब सुनकर बुध्दीजीवीयों को विचार तो करना चाहिये कि क्या सच्मुच में जानवरो को, पेड पोधो को ब्रह्म जिग्यासा होती है, या हो सकती है ? पेड पौधो की बात पर याद आया, जयपुर के आश्रम में ४ नीबूं के झाड है, जिनमें कभी फल नहीं लगते थे, एसा सभी को ग्यात था । सन १९६६ में श्री बाबा पुराने भक्तों की पुकार सुन कर २-३ महिने के लिये गये थे । ज्यों ही बाबा पहुन्चे उसके १ महिने बाद सब के सब नीम्बुओ से लबालब भर गये और बाबा के लौटने के बाद एक सीजन तो नीम्बू लगे लेकिन बाद में फिर बिना फल वाले । उनमे खाद पानी सब प्रयास किये गये, लेकिन सब व्यर्थ ।

http://youtu.be/AaREsiqtRZ0

निष्कर्ष (Moral of the Above Stories)

उपरोक्त दोनो ही उदाहरणों में ध्यान देने योग्य गूढ बात ये सिद्ध होती है कि यध्यपि परमात्म-प्राप्ति का मुख्यतः योग मनुष्य योनि में ही सिद्ध होता है, क्योकि ये कर्म-योनि है । फिर भी, भोग योनियों के जीवो के लिये परमात्म-प्राप्ति निशिद्ध है, ऐसा भी नही है । याने कि दूसरी योनि के जीव भी किसी कारण-वश परमात्मा की तरफ लग जायं तो उनका भी उद्धार हो सकता है । देवता भोग योनि है फिर भी इन्द्र को ज्ञान प्राप्त हुआ था – एसा शास्त्रो में आता है ।
इस प्रकार उपरोक्त दृष्टान्त का नैसर्गिक वर्णन सुन कर ये ही निष्कर्ष निकलता है कि कुत्ते कि योनि में उन दो जीवो को अवश्य मुक्ति मिली होगी, इसी तरह उस गाय को भी परमात्मा की प्राप्ति हुई होगी, कारण कि उसका श्री बाबा से इतना आर्त प्रेम भाव उस समय सब को देखने में आया था । इतना आर्त-भाव किसी और भक्त में भी न आया होगा कि ५ दिन तक अन्न जल छुए ही नहीं । यहां पर कोइ आक्षेप या तुलना नहीं करी जा रही है, केवल एक ऐसे प्राणी की चर्चा हो रही है जिसका परमात्मा के प्रति अनुराग एक अमुल्य निधी ही माननी चाहिये । ईश्वर की सृष्टि में सभी जीवो को परमात्मा की प्राप्ति का समान अधिकार है, ये बात और है कि मनुष्य के लिये आत्मोद्धार सुगम होता है क्योकि वो कर्म-योनि है और केवल मनुष्य का मन ही पूर्ण रूप से विकसित होता है । गोपाल गोपाल ।

गुरुपूर्णिमा पर आये भक्तो के अनुभव एवं संसमरण

This video clip is of Jabalpur Ashram of Shri Shri1 011 BrahmRishi Baba Ram SnehiJi Maharaj (fondly addressed as Baba) on the occasion of Guru Poornima, July 2011, showing the devotees sharing their experiences with the Master. Hopefully, more such clips will follow in near future, more on the experiences of devotees of our Master’s living times.

Baba’s devotees and disciples reach at this Jabalpur, Bhedaghat Ashram to join this festival in the midst of thick monsoon defying heavy rains, which at times block the roads submerged in flood waters. Amazing faith, unconditional love of devotees and constant (akhand) chanting of Ram Dhun are only some of the magical blessings of the spiritual presence of the Master. The Ra-m Ra-m Ra-m…was also the chant of Baba who used to chant  Creator God Rama’s name without a break, that is, while exhaling as well as during inhaling process too.

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